शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

भारतीय संस्कृति में विज्ञान की पैठ

हमारी भारतीय संस्कृति में गंगा को मां का संबोधन दिया गया है और ईश्वर  के समान पूजनीय  माना जाता है .हमारे मनीषियों ने गंगा को धर्म के साथ जोड़ दिया जिससे ग्रामीण और कम पढ़ लिखी जनता भी आदिकाल से इस पवित्र जल से स्नान कर और पी कर लाभान्वित होते रही आज विज्ञानं ने  यह प्रमाणित कर दिया है की गंगा जल में प्राकृतिक रूप से कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं की यह वर्षों तक ख़राब नहीं होता है और इसके निरंतर प्रयोग से स्वास्थ्य को लाभ पहुँच सकता है 
                 यमुना या फिर अन्य नदियों के जल  को हम पवित्र मानते हैं किन्तु गंगाजल को पावन माना जाता है पावन का अर्थ है जिससे मिल कर कोई दूषित चीज भी पवित्र हो जाये ,इसी का जनता ने गलत मतलब निकाला और नदियों के किनारे मल मूत्र त्याग कर ,मैला बहा कर, कपडे धो कर और अन्य तरह से गन्दगी बहा  कर गंगा जैसी अनमोल नदी को प्रदूषित कर डाला.ऐसे सन्दर्भों में ही आवश्यकता होती हैं संस्कृति से मिले विश्वासों को वैज्ञानिक सन्दर्भ में देखने और समझने की .यदि संस्कृति के रक्षक विज्ञानं को अपना मित्र समझें और विज्ञानं भी संस्कृति को अपना विरोधी न मान कर उसके साथ समायोजन करे तो शायद एक बेहतर माहौल बन सकता है. 

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

भारतीय संस्कृति में विज्ञान की पैठ

अगर एक साधारण व्यक्ति की नजर से देखा जाये तो विज्ञानं उस जहीनियत का नाम है जो तर्क के चश्मे से हर चीज को देखता है और प्रमाण मिलने पर ही स्वीकार करता है  .स्वीकार करने के बाद कुछ सिद्धांत या सूत्र प्रतिपादित किये जाते हैं जिन पर विश्वास कर के अगली पीढी आगे बढ़ती है .एक बार कोई तथ्य प्रतिपादित कर दिया जाता है फिर साधारणतः उसी को अटल सत्य मानते हैं जबतक की प्रमाणों सहित कोई उसका खंडन नहीं करता .इस जगह पर आकर हमारी संस्कृति के घोषित रक्षक चूक जाते हैं वो उन पुरानी मान्यताओं में तनिक भी फेर बदल नहीं चाहते जबकि देश काल के अनुरूप अगर सब कुछ बदलता है तो रीति रिवाजों में भी कुछ परिवर्तन होने स्वाभाविक हैं .इस तरह की हठवादिता के कारन वैज्ञानिक मानसिकता के लोग पूरी संस्कृति को ही नकारने पर विवश हो जाते हैं 
                  हमारी संस्कृति तत्कालीन तथ्यों पर आधारित है ,इस विषय पर चर्चा जरी रखेंगे. .

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

भारतीय संस्कृति में विज्ञान की पैठ

पिछले दिनों शुरू की गयी चर्चा को हम तुलसी के पौधे से आगे बढ़ाते हैं.भारतीय संस्कृति और प्राचीन भारतीय शास्त्रों जैसे आयुर्वेद और वास्तु शास्त्र आदि  में भी तुलसी के पौधे को बड़ा ही महत्त्व प्रदान किया गया है .इसबारे में अधिक विस्तार से जाने पर विषयांतर का भय है ,इसलिए इतना ही कह कर आगे विज्ञान की चर्चा करते हैं आज वैज्ञानिकों ने अनेक प्रकार के शोध कर के यह प्रमाणित कर दिया है क़ि तुलसी के पौधे को लगाने से वायु प्रदुषण बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.तुलसी का पौधा ऐसा पौधा है जो दिन रात दोनों में ही ऑक्सीजन प्रदान करता है.इसके साथ ही मच्छर आदि रोगाणु पैदा करने वाले कीट भी इसके नजदीक नहीं फटकते हैं.
         हमारी संस्कृति में प्रत्येक घर में इसकी पूजा का विधान शायद इसीलिए बनाया गया होगा क़ि इसी बहाने लोग इसे अपने आँगन में लगायेंगे और इससे होने वाले फायदे उठा सकेंगे.इस बारे में सोचियेगा जरुर.

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

भारतीय संस्कृति में विज्ञान की पैठ

भारतीय संस्कृति में विज्ञान की गहरी पैठ है ये मेरा व्यक्तिगत मत है .हालाँकि विज्ञान का मतलब ही अधिकतर पुराने विश्वासों से दूर रहने में लगाया जाता है अपने पूर्वजों से जो विश्वास और आस्थाएँ हमें मिली हैं उन्हें अन्धविश्वास मान लेना क्या पूरी तरह से ठीक है .किसी भी परंपरा को अगर आँखें मूंद कर निभाया जाता रहता है तो उसमे कुछ खामियां अवश्य आ जाती हैं लेकिन कुछ तो अज्ञान औरकुछ हठवादिता के कारण हम उन परम्पराओं को बिना किसी बदलाव के निभाते चले जा रहे हैं ,ये एक प्रकार से लकीर पीटना जैसा हुआ ,और पुरानी पीढी की इसी सोच के कारण नई पीढी अपनी परम्पराओं से न तो जुड़ पा रही है और न ही इन परम्पराओं में उसे सार्थकता नजर आ रही है.
     प्राचीन भारत के विद्वानों या ऋषि मुनियों द्वारा अनुभूत किए गए सिद्धांतों को आज विज्ञान भी किसी नकिसी रूप में मान्यता दे रहा है .आगे हम लोग विस्तार से इस विषय पर चर्चा में रहेंगे.

vigyan aur jyotish

विज्ञानं ने एक नए ग्रह के होने की जानकारी दे कर सभी ज्योतिषाचार्यों और ज्योतिष समर्थकों को कुछ न कुछ असमंजस में अवश्य ड़ाल दिया है हालाँकि इसके उत्तर में तर्क प्रस्तुत किए जा रहे हैं .लेकिन उम्मीद है क़ि आने वाले लम्बे समय तक इस पर चर्चा चलती रहेगी. 

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

वैज्ञानिक सोच अपनाएं महिलाऐं

वैज्ञानिक सोच अपनाना महिलाओं के वजूद को एक नयी पहचान देने के लिए आवश्यक है . हमारे देश की महिलाऐं अपनी परम्पराओं से इतनी गहरे से जुडी हैं क़ि किसी भी नयी चीज को अपनाने से उन्हें डर  सा लगता है किसी अनिष्ट की आशंका सी होने लगती है ,बस इसी बारे में मुझे कह्य्ना है क़ि पुराने ज़माने में भी जो संस्कार ,नियम या परम्पराएं बनाई गयी थीं वे भी किसी न किसी रूप में वैज्ञानिक सोच का ही नतीजा थीं ये अलग बात है क़ि उस समय के वैज्ञानिक हमारे ऋषि-मुनि होते थे और वे अपनी बात को धर्म से जोड़ कर जनता के सामने रखते थे ताकि शिक्षित-अशिक्षित हर तरह की जनता उनके नियमों को मान कर उसका लाभ उठा सके.इस बात को समझना हमारे देश की महिलाओं के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि एक हॉउस वाइफ जब बदलेगी तभी ये समाज बदलेगा.इसलिए कृपया सभी महिलाऐं अपने दिमाग की खिड़कियाँ खोलें पुरानी सोच से अपने दिमाग को मुक्ति दें एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूंगी पहले महिलाओं का घूँघट होना अनिवार्य था ,घर से बाहर निकलने की तो घूँघट के बिना कल्पना भी नहीं की जासकती थी ,इस चीज के बहुत से कारण गिनाये जा सकते हैं, लेकिन मेरे विचार  से मुख्य कारण था महिलाओं की रक्षा एक तो उनकी शारीरिक रक्षा दुसरे उनके रूप की रक्षा ताकि कहीं धुप से उनका रंग न काला हो जाये ,विज्ञान ने इसका हल निकल दिया है सन स्क्रीन क्रीम बना कर लड़कियां ये क्रीम लगा कर या अपना चेहरा लपेट कर तेज धुप से बच भी रही हैं और अपनी मंजिल भी पा रही हैं ......तो आगे मैं अपनी बहनों से विनती करना चाहूंगी क़ि माना क़ि वे एक सांचे में ढल चुकी हैं और उनके लिए बदलना बहुत मुश्किल है,लेकिन अपनी बहु को बेटी को कृपया अपने सांचे में ढलने की कोशिश न करें ,क्या पता आपके थोड़े से त्याग और सहयोग से आपके घर की कोई महिला अगले ओलम्पिक में सोना ले कर आजाये या फिर अगली  राष्ट्रपति या मुख्यमंत्री बन जाये......आमीन

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

संस्कृति और विज्ञानं

संस्कृति और विज्ञानं का अनोखा मिलन होता दिखाई पड़ा कामन वैल्थ खेलों के उद्घाटन समारोह में.विज्ञानं की आधुनिकतम  तकनीक के प्रयोग द्वारा जब पाँच हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी भारतीय संस्कृति की झलक दुनिया को दिखाई गयी तो पूरा संसार दांतों तले उंगली दबा कर देखता ही रह गया .एक भारतीय होने के नाते तो मुझे गर्व हुआ ही साथ ही  ऐसा भीलगा जैसे मेरी ही सोच को अमली जामा पहनाया जा रहा है,यानी क़ि लागु किया जा रहा है.जरा एक बार सोच कर देखिये क़ि हम अपनी संस्कृति की भव्यता तो इस मंच से प्रस्तुत कर रहे होते   लेकिन तकनीक का ऐसा सुन्दर प्रयोग करने के योग्य न होते तब भी क्या संसार भर की मीडिया इसी प्रकार  वाह-वाह कर रही होती और इसे अब तक का सर्वश्रेठ आयोजन बता रही होती;;;शायद नहीं बिलकुल भी नहीं.इसी  प्रकार यदि दुसरे नजरिए से देखें क़ि हम सर्वश्रेठ तकनीक का प्रयोग कर दुनिया को आतिशबाजी और अन्य देशों का नाच गाना आदि दिखाते तो भी इस तरह का प्रभाव पैदा करना असंभव ही था.संस्कृति और विज्ञानं अलग-अलग जहाँ समाज में एक तरह के कट्टरवाद को जन्म देते हैं वहीं एक साथ मिल कर एक प्रकार की सकारात्मकता को जन्म देते हैं.जहाँ संस्कृति हमारी जड़ों को मजबूती देती है वहीं विज्ञानं हमें उड़ने के लिए आसमान देता है.