सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

वैज्ञानिक सोच अपनाएं महिलाऐं

वैज्ञानिक सोच अपनाना महिलाओं के वजूद को एक नयी पहचान देने के लिए आवश्यक है . हमारे देश की महिलाऐं अपनी परम्पराओं से इतनी गहरे से जुडी हैं क़ि किसी भी नयी चीज को अपनाने से उन्हें डर  सा लगता है किसी अनिष्ट की आशंका सी होने लगती है ,बस इसी बारे में मुझे कह्य्ना है क़ि पुराने ज़माने में भी जो संस्कार ,नियम या परम्पराएं बनाई गयी थीं वे भी किसी न किसी रूप में वैज्ञानिक सोच का ही नतीजा थीं ये अलग बात है क़ि उस समय के वैज्ञानिक हमारे ऋषि-मुनि होते थे और वे अपनी बात को धर्म से जोड़ कर जनता के सामने रखते थे ताकि शिक्षित-अशिक्षित हर तरह की जनता उनके नियमों को मान कर उसका लाभ उठा सके.इस बात को समझना हमारे देश की महिलाओं के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि एक हॉउस वाइफ जब बदलेगी तभी ये समाज बदलेगा.इसलिए कृपया सभी महिलाऐं अपने दिमाग की खिड़कियाँ खोलें पुरानी सोच से अपने दिमाग को मुक्ति दें एक छोटा सा उदाहरण देना चाहूंगी पहले महिलाओं का घूँघट होना अनिवार्य था ,घर से बाहर निकलने की तो घूँघट के बिना कल्पना भी नहीं की जासकती थी ,इस चीज के बहुत से कारण गिनाये जा सकते हैं, लेकिन मेरे विचार  से मुख्य कारण था महिलाओं की रक्षा एक तो उनकी शारीरिक रक्षा दुसरे उनके रूप की रक्षा ताकि कहीं धुप से उनका रंग न काला हो जाये ,विज्ञान ने इसका हल निकल दिया है सन स्क्रीन क्रीम बना कर लड़कियां ये क्रीम लगा कर या अपना चेहरा लपेट कर तेज धुप से बच भी रही हैं और अपनी मंजिल भी पा रही हैं ......तो आगे मैं अपनी बहनों से विनती करना चाहूंगी क़ि माना क़ि वे एक सांचे में ढल चुकी हैं और उनके लिए बदलना बहुत मुश्किल है,लेकिन अपनी बहु को बेटी को कृपया अपने सांचे में ढलने की कोशिश न करें ,क्या पता आपके थोड़े से त्याग और सहयोग से आपके घर की कोई महिला अगले ओलम्पिक में सोना ले कर आजाये या फिर अगली  राष्ट्रपति या मुख्यमंत्री बन जाये......आमीन

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

संस्कृति और विज्ञानं

संस्कृति और विज्ञानं का अनोखा मिलन होता दिखाई पड़ा कामन वैल्थ खेलों के उद्घाटन समारोह में.विज्ञानं की आधुनिकतम  तकनीक के प्रयोग द्वारा जब पाँच हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी भारतीय संस्कृति की झलक दुनिया को दिखाई गयी तो पूरा संसार दांतों तले उंगली दबा कर देखता ही रह गया .एक भारतीय होने के नाते तो मुझे गर्व हुआ ही साथ ही  ऐसा भीलगा जैसे मेरी ही सोच को अमली जामा पहनाया जा रहा है,यानी क़ि लागु किया जा रहा है.जरा एक बार सोच कर देखिये क़ि हम अपनी संस्कृति की भव्यता तो इस मंच से प्रस्तुत कर रहे होते   लेकिन तकनीक का ऐसा सुन्दर प्रयोग करने के योग्य न होते तब भी क्या संसार भर की मीडिया इसी प्रकार  वाह-वाह कर रही होती और इसे अब तक का सर्वश्रेठ आयोजन बता रही होती;;;शायद नहीं बिलकुल भी नहीं.इसी  प्रकार यदि दुसरे नजरिए से देखें क़ि हम सर्वश्रेठ तकनीक का प्रयोग कर दुनिया को आतिशबाजी और अन्य देशों का नाच गाना आदि दिखाते तो भी इस तरह का प्रभाव पैदा करना असंभव ही था.संस्कृति और विज्ञानं अलग-अलग जहाँ समाज में एक तरह के कट्टरवाद को जन्म देते हैं वहीं एक साथ मिल कर एक प्रकार की सकारात्मकता को जन्म देते हैं.जहाँ संस्कृति हमारी जड़ों को मजबूती देती है वहीं विज्ञानं हमें उड़ने के लिए आसमान देता है.

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

विज्ञानं और हिन्दी

विज्ञानं पढने और जानने के लिए अंगरेजी का ज्ञान होना अनिवार्य सा रहा है बड़े ही हर्ष का विषय है कि कुछ संगठनो द्वारा हिन्दी में विज्ञानं लेखन को बढ़ावा दिया जा रहा है .ऐसे सभी लोगों को मैं साधुवाद देना चाहूंगी. क्योंकि हिन्दी में विज्ञानं लेखन होने पर हमारे देश का एक बड़ा तबका इसका लाभ उठा सकेगा.आज हिन्दी दिवस है सभी हिन्दी विज्ञानं ब्लॉगर को शुभकामनाएँ.

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

जन्माष्टमी

आज जन्माष्टमी है ,आप सभी को सब को सुख देने वाले कृष्ण -कन्हैया के जन्म दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ.कृष्ण को अगर कोई भगवन न भी माने तो भी वे एक महापुरुष के रूप में  अवश्य ही आदरणीय और पूजनीय हैं.आज हमारा विज्ञानं "लाफिंग थेरेपी " के बारे में बात करता है ,यानी की मुस्कुराने से या हंसने से आपकी न केवल मनोवैज्ञानिक वरन बहुत सी शारीरिक बीमारियाँ भी दूर हो सकती हैं ,विज्ञानं के इस नए अविष्कार के बारे में आज से हजारों साल पहले जन्म लेने वाले कृष्ण शायद जानचुके थे तभी तो कंस के अत्याचारों से दुखी तनाव ग्रस्त और हताश लोगों के जीवन में उन्होंने अपनी बाल सुलभ लीलाओं से . आनंद का संचार कर दिया .विज्ञानं ने हमारी सभ्यता को बहुत कुछ दिया है,ये विज्ञानं ही है जिसकी बदोलत  आज एक घरेलु महिला भी कुछ समय अपने लिए भी निकाल सकती है ,बाहर काम करने वाले महिला या पुरुष शीघ्रता से अपना काम पूरा कर सकते हैं ,मानव जाति सदा विज्ञानं की ऋणी रहेगी साथ ही मैं ये भी कहना चाहूंगी की हमें अपनी संस्कृति    को एक अलग नजरिये से देखने की आवश्यकता है .मैं बारबार जोर दे कर कहना चाहूंगी की हमारी  संस्कृति विज्ञानं की विरोधी नहीं सहयोगी है.  जन्माष्टमी बड़े ही हर्ष उल्लास से मनाया जाने वाला उत्सव है,इस तरह उत्साह से भर जाना ,जोश में आना हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है ये विज्ञानं भी मानता है, तो चलिए एक बार जोर से बोलते हैं -जय कन्हैयालाल की .नमस्कार




 

शनिवार, 28 अगस्त 2010

सर्प दंश

सर्प दंश से हर वर्ष बरसात के दिनों  में  लोगों  की  मौत  के मामले  सामने आते  हैं ,ग्रामीण  क्षेत्रों में ऐसी अनहोनी  अधिक ही सुनाई देती है, क्योंकि वहाँ अंधविश्वास के चलते पीड़ित व्यक्ति को तुरंत चिकित्सा नहीं उपलब्ध करवाई जाती. जब तक थोड़ी भी जान रहती है, झाड़ फूंक करवाई जाती है. स्थिति हाथ से बाहर निकलने पर डॉक्टर के यहाँ भागते हैं. जिसका कोई फायदा नही होता. इन हालातों से बचने के लिए, हमें ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जागरूक करना होगा. शिक्षा का प्रसार और उसके माध्यम से विज्ञान की जानकारी ऐसी घटनाओं को बहुत हद तक रोक सकती है.
हमारे देश की संस्कृति में विज्ञान के बहुत से पहलू बहुत हद तक खुद ही शामिल हैं. सावन के महीने में होने वाली नाग पंचमी की पूजा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. इस पूजा में घरों में दीवार को गोबर से लीप कर उस पर नाग देवता बनाकर पूजा की जाती है. इस बहाने एक ओर तो घरों की साफ सफाई हो जाती है और छोटे मोटे कीड़े मकोड़े या सर्प जैसे विषैले जीव भी भाग जाते हैं. दूसरी ओर परिवार के लोगों के मन में कहीं न कहीं ये बात भी बैठ जाती है कि बरसात में सर्प निकल सकते हैं और हमें इनसे सचेत रहना होगा.
इस प्रकार बड़े ही सरल ढंग से छोटे बच्चों आदि को सर्प के भय से सचेत कर दिया जाता है.